Wednesday, October 15, 2014

Chanakya Niti


Read full blog चाणक्य के 15 सूक्ति वाक्य  '' चाणक्य नीति ''
1) “दूसरो की गलतियों से सीखो अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने को तुम्हारी आयु कम पड़ेगी.”

2)”किसी भी व्यक्ति को बहुत ईमानदार (सीधा साधा ) नहीं होना चाहिए —सीधे वृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं.”

3)”अगर कोई सर्प जहरीला नहीं है तब भी उसे जहरीला दिखना चाहिए वैसे डंस भले ही न दो पर डंस दे सकने की क्षमता का दूसरों को अहसास करवाते रहना चाहिए. ”

4)”हर मित्रता के पीछे कोई स्वार्थ जरूर होताहै –यह कडुआ सच है.”

5)”कोई भी काम शुरू करने के पहले तीन सवाल अपने आपसे पूछो —मैं ऐसा क्यों करने जा रहा हूँ ? इसका क्या परिणाम होगा ? क्या मैं सफल रहूँगा ?”

6)”भय को नजदीक न आने दो अगर यह नजदीक आये इस पर हमला करदो यानी भय से भागो मत इसका सामना करो .”

7)”दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और महिला की सुन्दरता है.”

8)”काम का निष्पादन करो , परिणाम से मत डरो.”

9)”सुगंध का प्रसार हवा के रुख का मोहताज़ होता है पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है.”

10)”ईश्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसता है अपनी आत्मा को मंदिर बनाओ.”

11) “व्यक्ति अपने आचरण से महान होता है जन्म से नहीं.”

12) “ऐसे व्यक्ति जो आपके स्तर से ऊपर या नीचे के हैं उन्हें दोस्त न बनाओ,वह तुम्हारे कष्ट का कारण बनेगे. सामान स्तर के मित्र ही सुखदाई होते हैं .”

13) “अपने बच्चों को पहले पांच साल तक खूब प्यार करो. छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार दो .सोलह साल से उनके साथमित्रवत व्यवहारकरो.आपकी संतति ही आपकी सबसे अच्छी मित्र है.”

14) “अज्ञानी के लिए किताबें और अंधे के लिए दर्पण एक सामान उपयोगी है .”

15) “शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है. शिक्षित व्यक्ति सदैव सम्मान पाता है. शिक्षा की शक्ति के आगे युवा शक्ति और सौंदर्य दोनों ही कमजोर है.

अतिरूपेण वै सीता अतिगर्वेणः रावणः ।अतिदानाब्दलिर्बध्दो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत् ।।१२।।
आत्याधिक सुन्दरता के कारन सीताहरण हुआ, अत्यंत घमंड के कारन रावन का अंत हुआ, अत्यधिक दान देने के कारन राजा बाली को बंधन में बंधना पड़ा, अतः सर्वत्र अति को त्यागना चाहिए.

उद्योगे नास्ति दारिद्र्य जपतो नास्ति पातकम् ।मौनेनकलहोनास्ति नास्ति जागरितो भयम् ।।११।।
जो उद्यमशील हैं, वे गरीब नहीं हो सकते, जो हरदम भगवान को याद करते है उनहे पाप नहीं छू सकता.जो मौन रहते है वो झगड़ों मे नहीं पड़ते.जो जागृत रहते है वो निर्भय होते है.

त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ।।१०।।
कुल की रक्षा के लिए एक सदस्य का बलिदान दें,गाव की रक्षा के लिए एक कुल का बलिदान दें, देश की रक्षा के लिए एक गाव का बलिदान दें, आत्मा की रक्षा के लिए देश का बलिदान दें.

कोकिलानां स्वरो रूपं नारीरूपं पतिव्रतम् ।विद्यारूपं कुरूपाणांक्षमा रूपं रपस्विनाम् ।।९।।
कोयल की सुन्दरता उसके गायन मे है. एक स्त्री की सुन्दरता उसके अपने परिवार के प्रति समर्पण मे है. एक बदसूरत आदमी की सुन्दरता उसके ज्ञान मे है तथा एक तपस्वी की सुन्दरता उसकी क्षमाशीलता मे है.

रूपयौवनसम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः ।विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इवकिशुकाः ।।८।।
रूप और यौवन से सम्पन्न तथा कुलीन परिवार में जन्म लेने पर भी विद्या हीन पुरुष पलाश के फूल के समान है जो सुन्दर तो है लेकिन खुशबु रहित है.

मूर्खस्तु परिहर्त्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः ।भिद्यते वाक्यशूलेन अदृश्यं कण्टकं यथा ।।७।।
मूर्खो के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए उन्हें त्याग देना ही उचित है, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से वे दो पैरों वाले पशु के सामान हैं,जो अपने धारदार वचनो से वैसे ही हदय को छलनी करता है जैसे अदृश्य काँटा शरीर में घुसकर छलनी करता है .

मूर्खस्तु परिहर्त्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः ।भिद्यते वाक्यशूलेन अदृश्यं कण्टकं यथा ।।७।।
मूर्खो के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए उन्हें त्याग देना ही उचित है, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से वे दो पैरों वाले पशु के सामान हैं,जो अपने धारदार वचनो से वैसे ही हदय को छलनी करता है जैसे अदृश्य काँटा शरीर में घुसकर छलनी करता है .

एदतर्थं कुलोनानां नृपाः कुर्वन्ति संग्रहम् ।आदिमध्यावसानेषु न स्यजन्ति च ते नृपम् ।।५।।
राजा लोग अपने आस पास अच्छे कुल के लोगो को इसलिए रखते है क्योंकि ऐसे लोग ना आरम्भ मे, ना बीच मे और ना ही अंत मे साथ छोड़कर जाते है.

दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः ।सर्पो दंशति काले तु दुर्जनस्तु पदे पदे ।।४।।
एक दुर्जन और एक सर्प मे यह अंतर है की साप तभी डंस मरेगा जब उसकी जान को खतरा हो लेकिन दुर्जन पग पग पर हानि पहुचने की कोशिश करेगा .

आचारः कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम् ।सम्भ्रमः स्नेहमाख्यातिवपुराख्याति भोजनम् ।।२।।
मनुष्य के कुल की ख्याति उसके आचरण से होती है, मनुष्य के बोल चल से उसके देश की ख्याति बढ़ती है, मान सम्मान उसके प्रेम को बढ़ता है, एवं उसके शारीर का गठन उसे भोजन से बढ़ता है. 

कस्य दोषः कुलेनास्ति व्याधिना के न पीडितः ।व्यसनं के न संप्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ।।१।। 
दुनिया मे ऐसा किसका घर है जिस पर कोई कलंक नहीं, वह कौन है जो रोग और दुख से मुक्त है.सदा सुख किसको रहता है?

 

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